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किन्नर विमर्श: हाइकु विधा में कविता

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  • फूल अनेक

कोख न करे भेद

 धरा औ मातृ।।

  • नर- किन्नर

हों न कभी निराश

माँ की आस।।

  • कोख की माया

हे अर्धनारीश्वर !

अबूझ क्रीड़ा।।

  •  मन स्त्री का

काश समझे जग

कोख की पीड़ा।।

  • न्याय मिलेगा

शिखंडी को अब

स्त्रीत्व पथ ।।

रचनाकार – शालिनी सिंह

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