जल रहा है दीप हरने को अँधेरा
आप भी कह लो मगर ये सच कहाँ है।
राख होती वर्तिका का मौन तप है
है वहीं पर रोशनी जलती जहाँ है।
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दीपकों के नाम है यश की पताका
और बाती का मिटा अस्तित्व सारा,
त्याग की पूरी कहानी नाम इसके
जीतता आया अँधेरा नित्य हारा।
कालिमा इसके तले पलती हमेशा
ज्योति से उसको बचाकर पालता है,
वर्तिका जलती न जब ये मौन रहता
मुँह छिपा सबका अनुग्रह टालता है।
त्याग है,है दिव्यता जग हित जहाँ है
स्वर्ग है सुख है उजाला भी वहाँ है।
राख होती वर्तिका का मौन तप है
है वहीं पर रोशनी जलती जहाँ है।
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आप अपनी दृष्टि को फिर से जगाओ,
हर जगह बाती तुम्हें जलती मिलेगी।
दीपकों की फौज से पाकर सहारा
कालिमा भयमुक्त सी फलती मिलेगी।
आप लो संकल्प दीपक के तले का
ये अँधेरा आपको ही छाँटना है।
वर्तिकाओं को बढ़ाकर मान देकर
दर्द उनका भी समझना बाँटना है।
आप जिसको ढूंढते हो दीप के घर
पीर का पर्वत, लिए बाती यहाँ है।
राख होती वर्तिका का मौन तप है
है वहीं पर रोशनी जलती जहाँ है।
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—-मनोज शुक्ल”मनुज”
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