- फूल अनेक
कोख न करे भेद
धरा औ मातृ।।
- नर- किन्नर
हों न कभी निराश
माँ की आस।।
- कोख की माया
हे अर्धनारीश्वर !
अबूझ क्रीड़ा।।
- मन स्त्री का
काश समझे जग
कोख की पीड़ा।।
- न्याय मिलेगा
शिखंडी को अब
स्त्रीत्व पथ ।।
रचनाकार – शालिनी सिंह
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