काश ! श्यामसुंदर पालीवाल की सोच रखने वाले भाई हर गांव में होते तो हर दिन रक्षाबंधन का त्योहार हो जाता………
शालिनी सिंह,लखनऊ
**पिपलांत्री गांव: जहां रक्षाबंधन का मतलब सिर्फ भाइयों से नहीं, पेड़ों से भी है**
रक्षाबंधन का पर्व हमारे देश में भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है। यह एक ऐसा दिन है, जब बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती हैं। लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में इस त्योहार को मनाने का एक अनोखा और प्रेरणादायक तरीका देखने को मिलता है। यहां पर बहनें सिर्फ अपने भाइयों को ही नहीं, बल्कि पेड़ों को भी राखी बांधती हैं।
यह गांव पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता, और सामुदायिक सशक्तीकरण के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक मिसाल बन चुका है। पिपलांत्री की कहानी हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने त्योहारों को एक नए और सार्थक रूप में मना सकते हैं। आइए, इस गांव की अनोखी कहानी को विस्तार से जानते हैं।
### **मुख्य बिंदु:**
1. **रक्षाबंधन और पेड़:**
पिपलांत्री गांव में बहनें पेड़ों को राखी बांधकर उनकी सुरक्षा का संकल्प लेती हैं। यह परंपरा पिछले डेढ़ दशक से चली आ रही है और अब यह गांव की पहचान बन चुकी है।
2. **बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने की परंपरा:**
पिपलांत्री में बेटी के जन्म पर परिवार 111 पौधे लगाता है। इस अनोखी पहल की शुरुआत पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल ने अपनी बेटी की याद में की थी, जिससे गांव हरा-भरा हो गया है।
3. **पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता:**
इस गांव की महिलाओं ने पर्यावरण को बचाने के लिए राखी का त्योहार पेड़ों के साथ जोड़ दिया है। यह पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता का एक अनूठा संगम है।
4. **परिवार और पेड़ों के बीच गहरा संबंध:**
बेटी के जन्म पर लगाए गए पौधे परिवार की देखरेख में बड़े होते हैं। यह परिवार और पेड़ों के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है, जो लैंगिक समानता और संरक्षण को बढ़ावा देता है।
5. **सामूहिक योगदान और वित्तीय सुरक्षा:**
गांव में बेटी के जन्म पर सामूहिक रूप से 21,000 रुपये का योगदान किया जाता है और माता-पिता से 10,000 रुपये लिए जाते हैं, जो लड़की के 20 वर्ष की होने पर उसे मिलते हैं। इससे उसकी शिक्षा और भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
6. **स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार:**
पेड़ों की रक्षा के लिए एलोवेरा के पौधे लगाए गए, जिनसे ग्रामीण जूस और जेल जैसे उत्पाद बनाकर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। यह गांव की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर रहा है।
7. **डेनमार्क में अध्ययन का विषय:**
पिपलांत्री की अनूठी पहल को डेनमार्क के स्कूलों में भी पढ़ाया जाता है। यहां के बच्चे इस गांव के बारे में पढ़कर पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में सीखते हैं।
### **विस्तृत विवरण:**
**रक्षाबंधन का अनूठा रूप: पेड़ों को राखी बांधने की परंपरा**
पिपलांत्री गांव की महिलाएं हर साल रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बांधती हैं। यह अनोखी परंपरा पिछले 15 सालों से चली आ रही है और यह पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके अटूट समर्पण का प्रतीक है। जब गांव के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल की बेटी की मौत हुई, तो उन्होंने उसकी याद में यह पहल शुरू की। इससे न केवल उनकी बेटी की याद को जीवित रखा गया, बल्कि पूरे गांव को हरा-भरा बनाने का संकल्प भी लिया गया।
**बेटी के जन्म पर 111 पौधे: एक नई जिंदगी का स्वागत**
पिपलांत्री गांव में बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाना एक अनिवार्य परंपरा है। यह न केवल बेटी के जन्म का स्वागत करता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस परंपरा के चलते आज गांव में ढाई लाख से भी अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं, जो अब पूरे गांव को हरा-भरा बनाते हैं।
**पर्यावरण और लैंगिक समानता का अनूठा संगम**
इस गांव की कहानी सिर्फ पेड़ लगाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पेड़ों की सुरक्षा और उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी उठाती है। यहां के लोग अपनी बेटियों की परवरिश के साथ-साथ उन पौधों की देखभाल भी करते हैं, जो उन्होंने बेटी के जन्म पर लगाए थे। इससे बेटियों की वृद्धि और पेड़ों की बढ़त के बीच एक गहरा संबंध बनता है। संरक्षण, लैंगिक समानता, और सामुदायिक सशक्तीकरण के मूल्यों को साथ जोड़कर पिपलांत्री गांव ने एक नई मिसाल कायम की है।
**एक आर्थिक और सामाजिक क्रांति**
पिपलांत्री गांव में वित्तीय सुरक्षा के लिए भी खास पहल की गई है। बेटी के जन्म पर समुदाय सामूहिक रूप से 21,000 रुपये का योगदान देता है और माता-पिता से 10,000 रुपये लेकर, इसे एक निश्चित खाते में जमा कर दिया जाता है। इसके अलावा, शिक्षा और कानूनी उम्र तक शादी को प्राथमिकता देने के लिए माता-पिता से हलफनामे पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं।
**स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार और एलोवेरा की खेती**
इस पहल का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। पेड़ों की रक्षा के लिए उनके आसपास एलोवेरा के पौधे लगाए गए, जिनका उपयोग ग्रामीण जूस और जेल जैसे उत्पादों को बनाने और बेचने के लिए करते हैं। इससे उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है और गांव की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली है।
**डेनमार्क में अध्ययन का विषय**
पिपलांत्री की कहानी न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुकी है। डेनमार्क में इस गांव की कहानी स्कूलों में पढ़ाई जाती है। वहां के बच्चे पिपलांत्री के अनोखे पर्यावरण संरक्षण और लैंगिक समानता की पहल से प्रेरणा लेते हैं।
** रेडियो मित्र शालिनी का संदेश:**
इस रक्षाबंधन पर, मैं, शालिनी, आप सभी से यह निवेदन करती हूँ कि हम अपने भाइयों के साथ-साथ अपनी धरती माता को भी इस पर्व का हिस्सा बनाएं। पेड़ों को राखी बांधें, उन्हें भी अपने भाई की तरह सहेजें और उनकी सुरक्षा का वचन दें। यही हमारी धरती को हरा-भरा बनाए रखने और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका है।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या हमारे देश की सारी बहनें ऐसा कर सकती हैं? क्या हर भाई, हर सरपंच, हर नेता, हर मंत्री अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुरूप रक्षा का वचन पिपलांत्री के सरपंच की तरह देने को तैयार हैं?
अगर हाँ, तो न सिर्फ हमारी बेटियाँ सशक्त और सुरक्षित होंगी, बल्कि हमारी पृथ्वी भी संरक्षित होगी। पिपलांत्री गांव की इस प्रेरणादायक पहल से सीख लेते हुए, हम भी अपने आसपास के पर्यावरण को संवारने में अपनी भूमिका निभाएं।
रक्षाबंधन की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आइए, इस पर्व को एक नए और खास रूप में मनाएं।
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