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नवरात्र 2025 : भक्ति, संस्कृति और आधुनिक रंगों का संगम

नवरात्र : भक्ति, संस्कृति और आधुनिक रंगों का संगम

लेखिका : शालिनी सिंह, एंकर और मैनेजिंग डायरेक्टर – रेडियो जंक्शन

“नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ आपकी अपनी शालिनी सिंह और आज इस ख़ास मौके पर आप सबसे दिल की बातें कहने आई हूँ। आप सबको नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ये नौ दिन सिर्फ़ उपवास या व्रत रखने के नहीं होते, बल्कि आत्मा को माँ की भक्ति से जोड़ने के होते हैं।

सोचिए ज़रा – माँ दुर्गा के दरबार में दीप जल रहा हो, घंटियाँ बज रही हों, ढोल-नगाड़े की गूंज हो और पूरा वातावरण माँ के जयकारों से भर जाए… कितना पावन लगता है न?
लेकिन हाँ, उसी के साथ अब शहरों की गलियों में गरबा और डांडिया की गूंज भी सुनाई देती है। ये नवरात्र का आधुनिक रूप है, पर इसकी जड़ें बहुत गहरी और पौराणिक हैं। आइए, उसी की ओर लौटते हैं।

नवरात्र का पौराणिक महत्व

दोस्तों, नवरात्र की शुरुआत हम तब से मानते आए हैं जब सत्य-असत्य का संघर्ष हुआ था। महिषासुर नामक असुर इतना शक्तिशाली हो गया था कि देवता भी हार मान गए थे। तब तीनों देव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों से माँ दुर्गा को प्रकट किया।
नौ दिनों तक महिषासुर और माँ दुर्गा के बीच युद्ध चला। अंत में दसवें दिन महिषासुर का वध हुआ।
इसीलिए हम दशहरा या विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं।

ये कथा हमें सिर्फ़ पौराणिक इतिहास नहीं सुनाती, बल्कि आज भी यह संदेश देती है कि जब-जब बुराई बढ़ेगी, अच्छाई की जीत निश्चित होगी।

देवी के नौ रूप – नौ दिन, नौ ऊर्जा

नवरात्र का सबसे बड़ा महत्व है देवी के नौ रूपों की पूजा। हर दिन माँ का एक स्वरूप आराध्य होता है। आइए सरल भाषा में समझते हैं :

1. शैलपुत्री (पहला दिन) – पर्वतराज हिमालय की पुत्री। ये प्रकृति और स्थिरता का प्रतीक हैं।

2. ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) – तप और साधना की देवी। इनसे हमें धैर्य और संयम की प्रेरणा मिलती है।

3. चंद्रघंटा (तीसरा दिन) – इनके माथे पर अर्धचंद्र है और ये शांति व सौंदर्य की अधिष्ठात्री हैं।

4. कूष्मांडा (चौथा दिन) – इन्हें सृष्टि की जननी कहा गया है, जिनकी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना हुई।

5. स्कंदमाता (पाँचवां दिन) – भगवान कार्तिकेय की माता। ये मातृत्व और करुणा का स्वरूप हैं।

6. कात्यायनी (छठा दिन) – साहस और शौर्य की देवी। कन्याओं के विवाह संबंधी विशेष पूजन इनसे जुड़ा है।

7. कालरात्रि (सातवां दिन) – सबसे उग्र रूप, जो तमाम भय और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं।

8. महागौरी (आठवां दिन) – पवित्रता और शांति का रूप। इन्हें सौभाग्य और समृद्धि की देवी कहा जाता है।

9. सिद्धिदात्री (नवां दिन) – सभी सिद्धियों की दात्री। ये अध्यात्म की चरम शक्ति का स्वरूप हैं।

नौ दुर्गा रूप

लोकविश्वास और श्रद्धा

भारत के अलग-अलग हिस्सों में इन नौ दिनों की पूजा विधि भी अलग-अलग है। कहीं उपवास रखकर सिर्फ फलाहार किया जाता है, तो कहीं घट स्थापना और अखंड ज्योति जलाने की परंपरा है।
कई घरों में छोटे-छोटे बच्चे भी ‘माँ की चौकी’ सजाते हैं, तो कहीं पर कन्या पूजन होता है।

असल में ये नौ दिन हमें सिखाते हैं कि शक्ति सिर्फ़ बाहर नहीं, हमारे भीतर भी है। और उसी शक्ति को पहचानकर जीवन जीना ही नवरात्र का संदेश है।

देशभर में नवरात्र और गरबा–डांडिया की परंपरा

नवरात्र – एक देश, अनेक रंग

दोस्तों, भारत की यही खूबसूरती है कि एक ही त्योहार देशभर में अलग-अलग रूपों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
कहीं इसे पूजा-पाठ और व्रत के रूप में देखा जाता है, तो कहीं लोकनृत्य और मेलों के जरिए।

गुजरात – गरबा और डांडिया की धूम
यहाँ नवरात्र का मतलब ही है गरबा और डांडिया नाइट्स। पारंपरिक वेशभूषा में सजे लोग गोल घेरे में ढोल-नगाड़ों और अब डीजे की धुन पर भी नृत्य करते हैं।
गरबा शब्द ‘गर्भ’ से निकला है, जिसका मतलब है जीवन का स्रोत। प्राचीन परंपरा में मिट्टी के घड़े में दीप जलाकर उसके चारों ओर नृत्य किया जाता था। घड़ा यानी माँ का गर्भ और दीप यानी जीवन की ऊर्जा।
डांडिया को ‘तलवार नृत्य’ भी कहते हैं। दो डंडियों से खेला जाने वाला ये नृत्य देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का प्रतीक है।

पश्चिम बंगाल – दुर्गा पूजा
यहाँ नवरात्र दुर्गा पूजा के रूप में भव्यता से मनाया जाता है। पंडालों में विशाल प्रतिमाएँ, कलात्मक सजावट और ढाक की धुन पर नृत्य-भक्ति का अद्भुत संगम दिखता है।

उत्तर भारत – रामलीला और व्रत
उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली आदि में रामलीला मंचन, उपवास और मंदिरों में कीर्तन की परंपरा है। अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजन होता है।

महाराष्ट्र – घट स्थापना और हल्दी-कुमकुम
यहाँ घर-घर में कलश स्थापना और महिलाएँ हल्दी-कुमकुम का आदान-प्रदान करती हैं। ये नारी-संगठन और सम्मान की परंपरा है।

दक्षिण भारत – गोलू की परंपरा
तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में ‘गोलू’ सजाने की परंपरा है। इसमें देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और पौराणिक कथाओं की झलकियाँ सजाई जाती हैं।

हिमालयी क्षेत्र
उत्तराखंड और हिमाचल में नवरात्र के दौरान शक्ति पीठों पर विशेष मेले और अनुष्ठान होते हैं।

 

गरबा और डांडिया का सांस्कृतिक अर्थ

गरबा का अर्थ और परम्परा

दोस्तों, गरबा शब्द सुनते ही बस नृत्य और संगीत याद आते हैं, लेकिन असल में इसका मतलब है “गर्भ”, यानी जीवन का स्रोत।
प्राचीन परंपरा में मिट्टी के छोटे-छोटे घड़े – जिन्हें हम गरबा घट कहते हैं – के चारों ओर दीपक जलाकर नृत्य किया जाता था। यह सिर्फ़ नाचना नहीं है, बल्कि माँ दुर्गा के गर्भ में छिपी ऊर्जा और जीवन शक्ति का सम्मान है।

गरबा पारंपरिक नृत्य – गुजरात

 

गोल घेरे में लोग कदम मिलाकर नाचते हैं, और यही घेरे की आकृति ब्रह्मांड की चक्रीय गति का प्रतीक है – जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म की निरंतर प्रक्रिया।
यानी हर बार जब आप डांडिया बजाते हैं और गरबा करते हैं, आप माँ की शक्ति और जीवन की ऊर्जा को महसूस कर रहे होते हैं।

इस तरह गरबा सिर्फ़ मस्ती का नृत्य नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश भी देता है।

डांडिया का अर्थ और परंपरा

दोस्तों, गरबा के साथ ही डांडिया का नाम भी आता है। डांडिया वह रंगीन लकड़ी की छड़ियाँ हैं, जिनसे नृत्य करते समय ताल बनाते हैं। लेकिन इसका मतलब सिर्फ़ खेल या मस्ती नहीं है।

दरअसल, डांडिया देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का प्रतीक हैं। हर बार जब दो डांडियों को आप आपस में मिलाते हैं और ताल पर नाचते हैं, आप माँ दुर्गा की तलवार और बुराई पर अच्छाई की जीत का स्मरण कर रहे होते हैं।

डांडिया रास

 

पहले यह नृत्य मंदिरों में ही दीप और भक्ति गीतों के साथ होता था। अब शहरों में युवा इसे ढोल-नगाड़ों या डीजे के संग भी नाचते हैं, लेकिन इसका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व वही है – शक्ति, साहस और जीवन की ऊर्जा का उत्सव।

यानी जब भी आप डांडिया खेलें, सिर्फ़ मस्ती नहीं, बल्कि देवी माँ की शक्ति और बुराई पर जीत का स्मरण भी कर रहे हैं।

आधुनिक स्वरूप
पहले जहाँ गरबा और डांडिया देवी माँ के मंदिर में दीपक और भक्ति गीतों के बीच होता था, वहीं अब यह सामाजिक उत्सव और मनोरंजन का बड़ा जरिया बन गया है।

लोककथाएँ, शक्ति पीठ और सामाजिक-आर्थिक पहलू

लोककथाओं में नवरात्र

माँ दुर्गा महिषासुर से युद्ध कर रही थीं, तब देवताओं ने ढोल-नगाड़े बजाकर उनकी हिम्मत बढ़ाई। यही वजह है कि नवरात्र में ढोल-नगाड़ों की गूंज शुभ माना जाता है।

नवरात्र के दिनों में देवी माँ धरती पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों के घर-घर जाकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

गाँवों में कहा जाता है कि नवरात्र के दिनों में खेतों में बोई गई फसल माँ दुर्गा के आशीर्वाद से अच्छी होती है।

शक्ति पीठों का महत्व

शक्ति पीठ – नवरात्र में माँ की ऊर्जा के केंद्र

दोस्तों, नवरात्र केवल घर-घर पूजा और गरबा–डांडिया तक ही सीमित नहीं है। भारत में कई ऐसे शक्ति पीठ हैं, जहाँ देवी दुर्गा का अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव मिलता है। इन जगहों पर भक्त अपनी भक्ति और आस्था से नवरात्र को और भी खास बनाते हैं।

प्रमुख शक्ति पीठ और उनका महत्व

1. वैष्णो देवी (जम्मू-कश्मीर)

जम्मू में स्थित यह शक्तिपीठ लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है।

यहाँ माँ वैष्णो देवी के तीन प्रमुख स्वरूप – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती – स्थित हैं।

नवरात्र में यहाँ भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

 

2. कामाख्या देवी (असम)

असम की कामाख्या देवी शक्ति और तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र हैं।

यहाँ नवरात्र में विशेष अनुष्ठान और यज्ञ होते हैं।

देवी को स्त्री शक्ति और सृजन की अधिष्ठात्री माना जाता है।

 

3. कालीघाट (कोलकाता, पश्चिम बंगाल)

कोलकाता में स्थित कालीघाट शक्ति पीठ माँ काली को समर्पित है।

नवरात्र में यहाँ कीर्तन, भजन और भव्य उत्सव आयोजित होते हैं।

 

4. ज्वाला देवी (हिमाचल प्रदेश)

यहाँ प्राकृतिक अग्नि सदियों से जल रही है।

देवी ज्वाला की उपासना से जीवन में ऊर्जा और साहस मिलता है।

 

5. माता शाकुंभरी (उत्तर प्रदेश)

वनस्पति और अन्न से जुड़ी देवी।

यहाँ नवरात्र के दौरान विशेष पूजा और भंडारा आयोजित होता है।

 

6. श्री चण्डी देवी (हरिद्वार, उत्तराखंड)

गंगा के किनारे स्थित यह पीठ शक्ति और शांति का प्रतीक है।

नवरात्र में बड़ी संख्या में श्रद्धालु माँ चंडी का दर्शन करते हैं।

 

7. त्रिपुरा सुंदरी (त्रिपुरा)

यहाँ माँ त्रिपुरा सुंदरी का ध्यान और पूजा नवरात्र में विशेष महत्व रखता है।

 

8. कालिका देवी (काठियावाड़, गुजरात)

स्थानीय भक्तों के लिए यह नवरात्र का प्रमुख केंद्र है।

गरबा और डांडिया के उत्सव यहाँ और भी भव्य रूप ले लेते हैं।

 

9. माँ भद्रकाली (महाराष्ट्र)

महाराष्ट्र में भद्रकाली शक्ति पीठ नवरात्र में महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष पूजा और भजन का आयोजन करता है।

 

शक्ति पीठों की विशेष बातें

ये स्थल न सिर्फ़ भक्ति का केंद्र हैं, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

हर पीठ की अपनी अलग मान्यता, लोककथाएँ और पूजा की विधि है।

नवरात्र में यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था और समाजिक एकता मजबूत होती है।

 

सामाजिक और आर्थिक पहलू

परिवार और समाज को जोड़ना – घरों में भजन, कीर्तन और पूजा से माहौल भक्तिमय।

महिला सशक्तिकरण का प्रतीक – देवी के नौ रूप स्त्री के नौ स्वरूपों की याद दिलाते हैं।

आर्थिक गतिविधियाँ – बाज़ारों में देवी प्रतिमाएँ, पूजा सामग्री, वस्त्र, गरबा-डांडिया के कपड़े और सजावट का व्यापार।

पर्यटन का महत्व – शक्ति पीठों पर श्रद्धालुओं की भीड़, स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा।

 

आधुनिक युवा, नारी शक्ति और संदेश

आधुनिक युवा और नवरात्र

आज का युवा नवरात्र को फेस्टिवल सीज़न के रूप में भी मनाता है – गरबा नाइट्स, इंस्टा रील्स, रंग-बिरंगे कपड़े, सेल्फ़ी।

लेकिन संतुलन जरूरी है —
गरबा खेलते समय माँ को याद करना और डांडिया बजाते समय महिषासुर के खिलाफ माँ के शौर्य का स्मरण करना।

नारी शक्ति का सामाजिक संदेश

माँ दुर्गा के नौ रूप समाज की हर स्त्री के रूप हैं।

नवरात्र हमें याद दिलाता है कि नारी को सिर्फ़ पूजा ही नहीं, हर दिन सम्मान देना चाहिए।

बदलते समय में नवरात्र का महत्व

सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान को मज़बूत करना।

महिला सशक्तिकरण और “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाएँ नवरात्र की भावना से मेल खाती हैं।

अलग-अलग धर्म और जाति के लोग भी साथ आते हैं, जो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को मज़बूत करता है।

 

“तो दोस्तों, इस तरह नवरात्र सिर्फ़ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और आधुनिकता का संगम है।
इन नौ दिनों में हमें माँ की भक्ति तो करनी ही है, लेकिन याद भी रखना है कि नवरात्र का असली अर्थ है — नारी शक्ति का सम्मान, बुराई पर अच्छाई की जीत और समाज में एकता का संदेश।

अगली बार जब आप गरबा खेलने जाएँ, तो थोड़ा ठहरकर माँ का नाम ज़रूर लीजिएगा।
याद रखिए —
दीप की लौ, ढोल की थाप और माँ की शक्ति — यही है नवरात्र की असली पहचान।

मैं आपकी शालिनी सिंह, रेडियो जंक्शन से, और आप सबको नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएँ ।
माँ दुर्गा की कृपा आप सभी पर बनी रहे। जय माता दी!”

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Shalini Singh

RJ Shalini Singh is a renowned radio jockey, voice artist, and the Director of Radio Junction. Based in Lucknow, she is known for bringing literature, music, and meaningful conversations to life through her voice, making her a respected name in the world of radio.

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