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भिखारी बन गए उद्यमी: बदलाव टीम ने तस्वीर ऐसी बदली कि दिल कह उठा शाबाश

जो कल तक भीख मांगते थे अब वो उद्यमी बन गये 

  बद्लावोत्सव में मेला लगाकर भीख मांगने के काम में लगे लोगों ने पेश की मिसाल 

लखनऊ (उत्तरप्रदेश) : भीख मांगने के काम में जुड़े लोगों ने बद्लावोत्सव मेले में अपने-अपने ठेले का स्टाल लगाकर यह संदेश दिया कि जिन्दगी में कोई भी मौका आखिरी नहीं होता। जब भी मौका मिल जाए लोग अपनी जिन्दगी बदल सकते हैं।

बदलाव संस्था द्वारा भिक्षावृति मुक्त अभियान के तहत बद्लावोत्सव-2025 का प्रोग्राम लोक प्रशासन विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित आयोजित किया गया। बदलाव भिक्षावृत्ति में संलग्न रहे व्यक्तियों के समेकित पुनर्वास, पहचान-स्थापन और सामाजिक समावेशन के लिए निरंतर कार्यरत है। इस प्रोग्राम का उद्देश्य था जो लोग सालों से भीख मांगने के काम में जुड़े थे लेकिन अब बदलाव संस्था से जुड़कर उद्यमी बन गये हैं। इनमें से कोई चाय पकौड़ी और चाट बताशे बेचता है तो कोई मूंगफली, सिंघाड़ा और अमरुद। 

‘बदलावोत्सव-2025’ के माध्यम से उन साथियों की प्रेरक यात्राओं को साझा किया गया जिन्होंने भिक्षावृत्ति से बाहर आकर सम्मानजनक जीवन की ओर कदम बढ़ाया है। कार्यक्रम में लाभार्थी-नेतृत्व वाली प्रदर्शनी, उद्यमशीलता से जुड़े स्टॉल, अनुभव-साझा और अनुभवी पैनलिस्टों के सत्र एवं संवाद शामिल थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलित कर किया गया। जिसमें प्रो. नंदलाल भारती (विभागाध्यक्ष, लोक प्रशासन),प्रो. अनूप कुमार भारती (समाज कार्य विभाग), डॉ. सुचिता चतुर्वेदी, संदीप खरे (विज्ञान फाउंडेशन) तथा बदलाव संस्था के लाभार्थी बादल और सोनी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित किया।

इसके पश्चात बदलाव संस्था के संस्थापक एवं कार्यकारी निदेशक श्री शरद पटेल ने संस्था के पुनर्वास मॉडल पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि अब तक 590 से अधिक भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों का पुनर्वास कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा चुका है। यह मॉडल केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मसम्मान, कौशल विकास और सामाजिक पुनर्संलग्नता पर आधारित है।

कार्यक्रम के पहले सत्र में बदलाव संस्था के पांच लाभार्थियों की यात्रा सुनी गयी ये वो लोग थे जो कल तक भीख मांगने के काम में जुटे थे लेकिन अब रोजगार से जुड़ गये हैं। इन पांच साथियों की बदलाव की कहानियाँ सुनकर हाल में मौजूद सभी लोगों ने जमकर सराहना की। इनकी कहानियाँ यहाँ मौजूद लोगों की प्रेरणा बनी।

दूसरे पैनल में लोक प्रशासन विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नन्दलाल और किंग जार्ज मेडिकल युनिवर्सिटी के मनोचिकित्सा विभाग में सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत सहायक प्रोफेसर डॉ प्रसाद थे. इस पैनल को कहकशा परवीन ने मोडरेट किया. डॉ. प्रसाद ने कहा की भिक्षावृत्ति केवल सामाजिक या आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ मुद्दा भी है। लगभग 30–40 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से अस्थिर होते हैं या चिंता (एंग्जायटी) जैसी समस्याओं से ग्रसित होते हैं। हम आमतौर पर शारीरिक विकलांगता पर ध्यान देते हैं, लेकिन मानसिक बीमारी को भी गंभीरता से समझना चाहिए और उनके प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट) बनवाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि वे सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें। भिक्षावृत्ति में नशे की लत की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए समय पर उपचार (ट्रीटमेंट) बेहद आवश्यक है।

डॉ नन्दलाल भारती ने कहा कि भिक्षावृत्ति में शामिल व्यक्ति के भीतर स्वाभिमान जगाना बहुत ज़रूरी है। केवल लोक प्रशासन अकेले कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि जमीनी स्तर पर काम करना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए एनजीओ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। ऐसा नहीं है कि भिक्षावृत्ति में शामिल लोग विकास में योगदान नहीं देते वे भी वस्तुएँ खरीदते हैं और उन पर कर (टैक्स) चुकाते हैं, इस प्रकार वे भी योगदान देते हैं। सरकारी योजनाओं पर फोकस होना चाहिए और लोक प्रशासन की भूमिका इन्हें सुगम बनाना है, ताकि सभी मिलकर सामूहिक रूप से कार्य कर सकें।

दुसरे पैनल “समावेशी समाज के निर्माण में लोक प्रशासन की भूमिका” विषय पर आयोजित पैनल चर्चा का संचालन श्री शरद पटेल द्वारा किया गया। पैनल में डॉ. हीरालाल (IAS), श्री सुधाकर शरण पांडेय (जिला परिवीक्षा अधिकारी, लखनऊ), डॉ. सुचिता चतुर्वेदी, तथा डॉ. आर.एस. जादौन (अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति – CWC, लखनऊ) शामिल रहे। श्री सुधाकर शरण पांडेय, DPO लखनऊ ने बताया कि जो बच्चे भिक्षावृत्ति में संलग्न होते हैं और जिन्हें बाल गृह में लाया जाता है, उन्हें सामान्य बच्चों के समान रखा जाता है, अलग-अलग नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि “यदि भिक्षावृत्ति में शामिल बच्चों को अलग कर दिया जाए तो वे सीखने की प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं। इन बच्चों का कोई निश्चित टाइम-टेबल या सामाजिक संस्कृति नहीं होती। सामान्य बच्चों के साथ रहने से उन्हें अनुशासन, व्यवहार और सीखने का अवसर मिलता है।”

अंजनी सिंह जिला समाज कल्याण अधिकारी ने कहा कि सरकार और एनजीओ को मिलकर कार्य करना होगा, ताकि दोनों के लाभार्थियों तक सरकारी योजनाओं का वास्तविक लाभ पहुँच सके। उन्होंने समन्वय और साझेदारी को भिक्षावृत्ति उन्मूलन की कुंजी बताया।

डॉ. सुचिता चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में कहा कि भिक्षावृत्ति एक स्थायी नहीं, बल्कि कई बार मौसमी (Seasonal Begging) प्रकृति की भी होती है, जिसे नीति निर्माण और पुनर्वास योजनाओं में समझना आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में भिक्षुक गृह अब अस्तित्व में नहीं रहे हैं, और वहाँ कार्यरत कर्मचारियों को अन्य विभागों या स्थानों पर समायोजित कर दिया गया है।

डॉ. आर. एस. जादौन, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति (CWC), लखनऊ ने अपने वक्तव्य में कहा कि भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई अलग या विशिष्ट योजना अभी तक लागू नहीं की गई है। भिक्षावृत्ति से जुड़े मामलों को विभिन्न उप-योजनाओं (Sub-schemes) के अंतर्गत देखा जाता है, लेकिन इससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है।

डॉ. जादौन ने कहा कि बिना अभिभावक (Parent) की सहमति या परामर्श के किसी भी बच्चे को लंबे समय तक संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि बाल संरक्षण कानून बच्चों के अधिकार और पारिवारिक सहभागिता को प्राथमिकता देता है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में किए जाने वाले रेस्क्यू ऑपरेशन केवल तात्कालिक हस्तक्षेप हैं और इन्हें दीर्घकालिक समाधान नहीं माना जा सकता।

डॉ. हीरालाल, IAS ने भिक्षावृत्ति से जुड़ी ज़मीनी सच्चाइयों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि इस समस्या को केवल कागज़ी योजनाओं के माध्यम से नहीं समझा जा सकता। उन्होंने एनजीओ को अधिक समर्थन और सहयोग देने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि ज़मीनी स्तर पर वास्तविक परिवर्तन संभव हो सके।

तीसरे और अंतिम पैनल में श्री चन्द्रा मिश्रा संस्थापक बेगर्स कारपोरेशन, संदीप खरे विज्ञान फाउन्डेशन और अरविन्द शुक्ला, संस्थापक न्यूज पोटली ने अनुभव साझा किये कि गैर सरकारी संगठनों को फील्ड में काम करने के दौरान क्या मुश्किलें आती हैं और मीडिया भिक्षाव्रती जैसे मुद्दे पर कैसे गम्भीरता से रिपोर्टिंग कर सकती है. 

चन्द्रा मिश्रा ने कहा कि SMILE जैसी सरकारी योजनाएँ लागू होने के बावजूद ज़मीनी स्तर पर प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाई हैं। भिक्षावृत्ति जैसी जटिल समस्या से निपटने के लिए केवल वर्तमान योजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि और व्यापक, व्यावहारिक और निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।

न्यूज पोटली के संस्थापक अरविंद शुक्ला ने कहा कि एक पत्रकार के रूप में सरकारी आँकड़ों और ज़मीनी हकीकत के बीच के अंतर को सामने लाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मीडिया इस मुद्दे पर तथ्यपरक रिपोर्टिंग के माध्यम से समाज और सरकार—दोनों को संवेदनशील बना सकती है।

वहीं संदीप खरे ने शेल्टर होम्स की कार्यक्षमता (Functionality) और उनकी वास्तविक क्षमता (Occupancy) के बीच गंभीर असंतुलन को उजागर किया। उन्होंने कहा कि कई स्थानों पर शेल्टर होम्स या तो पूरी तरह कार्यरत नहीं हैं, या फिर ज़रूरत के अनुसार उपयोग में नहीं लाए जा रहे हैं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. रूपेश कुमार सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, सामाजिक कार्य विभाग, डीएसएमएनआरयू ने कहा कि भिक्षावृत्ति एक वैश्विक परिघटना है, जो अब डिजिटल और साइबर रूप भी ले रही है। इसका समाधान केवल दान नहीं, बल्कि समग्र और स्थायी पुनर्वास है।

कार्यक्रम में गैर सरकारी संगठन, समाज कल्याण विभाग के अधिकारी, विभागाध्यक्ष, प्रोफ़ेसर, मनोचिकित्सक, पुनर्वासित साथी, वालेंटियर और बदलाव की टीम समेत 100 से ज्यादा लोग मौजूद रहे। सभी ने मेले के स्टाल से खरीदकर खाने की सामग्री खाई और साथियों का हौसला बढ़ाया।

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Shalini Singh

RJ Shalini Singh is a renowned radio jockey, voice artist, and the Director of Radio Junction. Based in Lucknow, she is known for bringing literature, music, and meaningful conversations to life through her voice, making her a respected name in the world of radio.