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जब पक्षी अपना घर खुद बनाते हैं, हम क्यों करें उनके वास्तु का दावा?

घोंसले नहीं, घने पेड़ चाहिये  “जब पक्षी अपना घर खुद बनाते हैं, हम क्यों करें उनके वास्तु का दावा?”

गुजरात के निसर्ग निकेतन की तस्वीर: एक दम्पति ने इस निकेतन को सँवारा है।

लेखिका: RJ शालिनी सिंह

(रेडियो जंक्शन पर प्रकृति से जुड़ी एक सच्ची बात)

कुछ वक़्त से देख रही हूँ —

लोग बड़े प्यार से सुंदर-सुंदर बर्ड हाउस खरीदते हैं,

उन्हें बालकनी या छतों पर टाँगते हैं,

पास में पानी रख देते हैं, दाना भी।

दिल से कोशिश करते हैं,

इसमें कोई शक नहीं।

लेकिन…

(हाँ, यही “लेकिन” रोकता है मुझे…)

हमने क्या कभी सोचा —

कि क्या पक्षियों को वाकई हमारे बनाए घरों की ज़रूरत है?

पक्षियों को ‘बनाया हुआ घर’ नहीं चाहिए,

उन्हें चाहिए — वो मौका, वो जगह, वो माहौल

जहाँ वो अपना घर खुद बुन सकें।

अब ज़रा सोचिए —

हर इंसान जैसे अपने घर के लिए वास्तु देखता है,

वैसे ही हर परिंदा भी अपने प्रजनन के लिए एक सुरक्षित और उपयुक्त जगह चुनता है।

और फिर, एक-एक तिनका जोड़कर,

धागा, सूखी पत्तियाँ, रूई, कीचड़ —

जो-जो मिल सके — उनसे अपना घोंसला खुद बनाता है।

किसी गौरैया (House Sparrow) का घोंसला देखिए —

छोटे-छोटे सुराखों, पुराने स्विच बोर्ड, बिजली के खंभे,

यहाँ तक कि टूटी छत की दरार तक में वो घुसकर

रुई, सूत, तिनके से गोल घोंसला बनाती है,

जिसके अंदर गर्माहट और सुरक्षा दोनों होते हैं।

              🌿  गौरैया (House Sparrow) 🌿

तस्वीर:  छवि  में गौरैया का घोंसला है, जिसे आमतौर पर बिल्डिंग की दरारों, ड्रायर वेंट या सिग्नल बॉक्स जैसी सुरक्षित जगहों पर बनाती हैं।

बनावट: सूखा घास, पत्ते, रुई और कभी-कभी रेशम या कागज़ की परत—इन्हें एक टनेल में गड़ा घोंसला बनाती हैं, अंडे और नन्हे चूजों की सुरक्षा के लिए ।

प्रजनन अवधि: लगभग 10–14 दिन तक अंडों को ताप देती हैं, उसके बाद 14–16 दिन चूजों की परवरिश होती है।

 बया (Weaver Bird) की बात करें,

तो क्या कहें —

इंजीनियर कह लें या कलाकार!

घास और पत्तियों की बुनाई से ऐसा झूले जैसा घोंसला बनाता है,

जो पेड़ की डाल से लटकता है।

एकदम सुव्यवस्थित —

अंदर बच्चों के लिए कमरा, एक एंट्री टनल, और हवा रोके — ऐसी बनावट।

                 🌿  बया घोसला (Weaver Bird) 🌿

तस्वीर:  छवि  में झूमर जैसी नक्काशीदार बुनाई दिखती है—पेड़ की डालों पर झूलते हुए, जैसे किसी कलाकार द्वारा बुना हो!

बनावट: सूखी घास और पत्तियों को महीन गोदाम में बुना जाता है; इसमें इनलेट टनल और अंदर एक सुरक्षित कक्ष होता है—जहाँ केवल बीज-दाने से पेट भरते हैं ।

प्रजनन: इस घोंसले में पिता-बया शुरू में बहादुरी से सारे पक्षियों को बुलाता है; चूजे निकलते हैं और उड़ान भरने तक लगभग 20–25 दिन रहते हैं।

 रामचिरैया यानी किंगफिशर —

वो पेड़ पे नहीं,

बल्कि मिट्टी की दीवार या नदी किनारे की खड़ी कगार में छेद करती है,

और अंदर जाकर अपना घर बनाती है।

    🌿रामचिरैया (Kingfisher-type / मिट्टीवृत्त घोंसला) 🌿

तस्वीर:  छवि में दीवार, तल्ख मिट्टी या नदी के किनारे खुदा हुआ नालीनुमा बिल साफ दिखता है।

बनावट: मिट्टी की दीवार में सुरंग खोदकर अंदर एक छोटी सी कक्ष बनाई जाती है—स्थिर और जल-आधारित भोजन के पास ही उनकी सुरक्षित दुनिया है ।

प्रजनन: लगभग 3–5 अंडे देती हैं; उभरने के बाद चूजे बिल के अंदर लगभग 3–4 सप्ताह रहते हैं, बड़ों की मछली- खिलाई से पोषित होते हुए।

 तोता (Parrot) —

वो पुराने बरगद या पीपल के सूखे तनों में

किसी पुरानी गिलहरी की सुरंग या खोखली जगह को अपनाता है।

वो खुद नहीं बनाता,

मगर सुरक्षित जगह की खोज में उस्ताद है।

              🌿  तोते का घरौंदा (पेड़ों की दरख्तों में) 🌿

 

 कठफोड़वा (Woodpecker) —

अपना घोंसला सीधे पेड़ में छेद करके बनाता है।

एकदम गोल और साफ़-सुथरा।

बीच जंगल में ऐसे घोंसले दिखाई दें,

तो समझिए कोई सजग मम्मी-पापा वहाँ रहने वाले हैं।

             🌿  कठफोड़वा (Woodpecker) 🌿

छवि  में पेड़ की काया में खुदा हुआ घोंसला और चूजों की नजर आती है।

बनावट: लकड़ी में एकदम गोलाकार या दीर्घाकार सुरंग खोदता है—कंधे और चोंच दोनों से—बाहर से देखो तो छेद, अंदर देखो तो घोंसला तैयार ।

प्रजनन: ये घोंसले अक्सर एक जोड़ी द्वारा धीरे-धीरे बनाए जाते हैं, जिसमें बैठने (incubation) में 10–14 दिन, बच्चे उड़ने तक लगभग 21–35 दिन लगते हैं।

 फाख्ता (Dove) —

बड़ी ही सादगी से,

बस दो-चार तिनके कहीं कोने में रख देती है —

बिना दिखावे के,

मगर भरोसे के साथ।

फ़ाख्ता का घोसला         🌿 फाख्ता (Dove) कुछ तिनको का  घोंसला 🌿

अब आप सोचिए —

इन सबने अपना-अपना तरीका खोजा,

माहौल चुना,

घोंसला बनाया,

तब जाकर अंडे दिए, बच्चे पाले।

प्रजनन का ये चक्र कोई इत्तेफाक नहीं है,

ये एक गहरी समझ, और पर्यावरण से तालमेल की मिसाल है।

और हम?

सोचते हैं कि लकड़ी का एक प्यारा-सा घर लटकाकर,

बर्ड हाउस कहके,

हमने उनकी ज़िंदगी आसान कर दी?

सच तो ये है —

हमने उनके घर नहीं छीने,

हमने उनके माहौल छीने हैं।

हमने पेड़ काटे,

तालाब सूखने दिए,

खाली ज़मीनों पर सीमेंट बिछा दी।

बर्ड हाउस में दाना रख देना आसान है,

मगर बया को अपने घोंसले की जगह देना —

उसके लिए पेड़ बचाना, ये मुश्किल है।

और ज़रूरत भी।

आज अगर हम सच में चाहते हैं

कि चिड़ियाँ लौटें,

तो हमें फिर से वो माहौल बनाना होगा।

फलों से भरे पेड़ लगाइए,

तालाब और नमीदार ज़मीन बचाइए,

अपने घरों की छतों और दीवारों को बंजर न रहने दीजिए।

घोंसले नहीं,

फिर से वो दुनिया बनाइए

जहाँ हर परिंदा अपने घोंसले का वास्तु खुद तय कर सके।

फिर मिलूँगी…

किसी बया के झूलते घर के नीचे,

या किसी गौरैया की चहचहाहट में…

जहाँ वो कहे —

“अब तुमने घोंसला नहीं दिया इंसान,

मेरा हक लौटाया है।”

— शालिनी सिंह

RJ, Radio Junction

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Shalini Singh

RJ Shalini Singh is a renowned radio jockey, voice artist, and the Director of Radio Junction. Based in Lucknow, she is known for bringing literature, music, and meaningful conversations to life through her voice, making her a respected name in the world of radio.

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