मुंबई, 5 अप्रैल 2025:
भारतीय सिनेमा में देशभक्ति की पहचान बन चुके अभिनेता, निर्देशक और लेखक मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। 87 वर्ष की आयु में 4 अप्रैल की रात उन्होंने मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु का कारण मायोकार्डियल इंफार्क्शन बताया गया है। साथ ही वे लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों से भी जूझ रहे थे।
आज सुबह, 5 अप्रैल को, मनोज कुमार का अंतिम संस्कार पवन हंस श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान के साथ संपन्न हुआ। अंतिम विदाई में फिल्म जगत की कई नामी हस्तियां शामिल रहीं, जिनमें अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, सलीम खान और कई युवा कलाकारों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। आम जनता की भारी भीड़ भी ‘भारत कुमार’ को अंतिम विदा कहने के लिए उपस्थित थी।

एक महान कलाकार का सफर
24 जुलाई 1937 को जन्मे मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1957 में फिल्म फैशन से की, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1965 की फिल्म शहीद से, जिसमें उन्होंने भगत सिंह की भूमिका निभाई थी। इसके बाद उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान और क्रांति जैसी फिल्मों के ज़रिए उन्होंने देशभक्ति को परदे पर जीवंत किया।
मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के ज़रिए आम भारतीय की पीड़ा, संघर्ष और आत्मगौरव को प्रस्तुत किया। उपकार फिल्म, जो प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय जवान, जय किसान’ नारे से प्रेरित थी, में उन्होंने ‘भारत’ नामक किरदार निभाया – और यहीं से उन्हें ‘भारत कुमार’ की उपाधि मिली।
सम्मान और विरासत
मनोज कुमार को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए 1992 में पद्म श्री और 2015 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने न केवल देशभक्ति बल्कि सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कहानियों को भी परदे पर बेबाक़ी से दिखाया। उनके संवाद, उनकी पटकथाएं और उनका निर्देशन आज भी फिल्म निर्माण की पाठशाला माने जाते हैं।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति, तमाम राजनीतिक और फिल्मी हस्तियों ने गहरा शोक व्यक्त किया। सोशल मीडिया पर #BharatKumar ट्रेंड करता रहा और देशभर से उन्हें श्रद्धांजलि मिलती रही।
एक युग की समाप्ति
मनोज कुमार का जाना केवल एक अभिनेता का जाना नहीं है, बल्कि भारतीय सिनेमा में एक विचारधारा, एक संवेदनशील दृष्टिकोण, और देशभक्ति की भावना का जाना है। उनके संवाद, उनकी कहानियाँ और उनका व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
“वो भारत था, भारत है और भारत रहेगा – परदे पर भी और दिलों में भी।”
लेख: रेडियो जंक्शन न्यूज़ डेस्क
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