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कोहबर: भारतीय संस्कृति की अनूठी कला और परंपरा

लखनऊ: शालिनी सिंह

कोहबर—यह शब्द सुनते ही हमारे मन में किसी विशेष कक्ष, चित्रकला या सांस्कृतिक परंपरा का अद्भुत चित्र उभरता है। यह केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक ऐसा जीवंत प्रतीक है, जो विवाह, प्रेम, प्रजनन, और सामाजिक मूल्यों को अभिव्यक्त करता है। अलग-अलग क्षेत्र में कोहबर को लेकर विभिन्न मान्यताएं, चित्रण और परंपराएं हैं, जो इसे और भी समृद्ध बनाती हैं।

कोहबर: नाम का अर्थ और उत्पत्ति

कोहबर शब्द का मूल ‘कोह’ (गुफा) और ‘बर’ (दूल्हा) से लिया गया है। यह वैवाहिक जीवन के आरंभ और उसमें समाहित भावनाओं को प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत करता है। यह उस स्थान का भी संकेत है, जहां दूल्हा-दुल्हन का पहला मिलन होता है। इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में कोहबर के अलग-अलग अर्थ हैं, जो इसकी बहुआयामी प्रकृति को दर्शाते हैं।

कोहबर की सांस्कृतिक यात्रा

कोहबर का महत्व केवल विवाह तक सीमित नहीं है। यह भारतीय समाज की सामूहिक स्मृति और परंपराओं का हिस्सा है। इसकी शुरुआत संभवतः उस समय से हुई होगी, जब मानव ने दीवारों पर चित्र बनाकर अपने विचार और भावनाएं व्यक्त करना सीखा। धीरे-धीरे यह कला विवाह और प्रजनन से जुड़ी परंपराओं का हिस्सा बन गई।

कोहबर: विभिन्न क्षेत्रों में विविधता

1. बिहार (मधुबनी कला के अंतर्गत कोहबर)

बिहार में कोहबर, खासकर मिथिला क्षेत्र में, मधुबनी चित्रकला का अभिन्न अंग है।

चित्रांकन की शैली: दीवारों पर कमल के फूल, बांस के पौधे, मछलियां, सांप, सूर्य और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्व उकेरे जाते हैं।

प्रतीकात्मकता:

कमल का फूल: स्त्री की शक्ति और पवित्रता का प्रतीक।

बांस का पौधा: पुरुष ऊर्जा और वंश परंपरा का प्रतीक।

मछलियां और सांप: जीवन और प्रजनन की निरंतरता के प्रतीक।

सूर्य और चंद्रमा: वर-वधू को चिरंजीवी और धन्य होने का आशीर्वाद।

उत्सव का हिस्सा: विवाह के समय घर की कोहबर कक्ष की दीवारों को इस कला से सजाया जाता है। यह चित्रकला नवविवाहित जोड़े के लिए शुभ मानी जाती है।

2. झारखंड का कोहबर

झारखंड में कोहबर, दीवारों पर बनाई जाने वाली पारंपरिक चित्रकला है।

चित्रों के विषय: बेल-बूटे, मोर, फूल, और पशु-पक्षी।

रंगों का उपयोग: प्राकृतिक रंग, जैसे लाल मिट्टी, सफेद दूधी मिट्टी, काला भेलवा, और पीला हल्दी से बनाए जाते हैं।

कला का महत्व: विवाह के समय वर-वधू के एक होने और परिवार की समृद्धि के प्रतीक के रूप में।

जीआई टैग: झारखंड की कोहबर कला को इसकी विशिष्टता और सांस्कृतिक महत्व के लिए ‘भौगोलिक संकेतक’ का दर्जा प्राप्त है।

3. मध्य प्रदेश का कोहबर

मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र में कोहबर का मतलब है ‘कोख भरने’ की मनोकामना।

कुलदेवता की पूजा: नवविवाहित जोड़ा घर में प्रवेश से पहले कुलदेवता के सामने प्रार्थना करता है।

चित्रांकन: स्वस्तिक, नारियल, और परंपरागत आकृतियां दीवारों पर उकेरी जाती हैं।

सांस्कृतिक महत्व: यह रस्म परिवार के समृद्ध और खुशहाल भविष्य की कामना से जुड़ी है।

4. विंध्य क्षेत्र का कोहबर

विंध्य क्षेत्र में कोहबर का अर्थ केवल वैवाहिक कक्ष नहीं है, बल्कि यह मनोरंजन और पारिवारिक उत्सव का स्थान भी है।

चित्रों का महत्व: यहां के कोहबर चित्रों में ‘स्वस्तिक’ अनिवार्य रूप से बनाया जाता है, जो जीवन चक्र और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है।

कोहबर गीत: विवाह के बाद रस्मों के दौरान गाए जाने वाले गीत।

कोहबर चित्रकला: तकनीक और शैली

कोहबर चित्रकला में तकनीक और शैली का विशेष महत्व है।

प्राकृतिक उपकरण: चित्रांकन के लिए उंगलियां, लकड़ी की कंघी और दातुन का उपयोग होता है।

रंगों की मौलिकता: मिट्टी, पौधों, और खनिजों से तैयार प्राकृतिक रंगों का प्रयोग।

चित्रों के संदेश: हर चित्र के पीछे एक प्रतीकात्मक संदेश छुपा होता है।

कोहबर गीत और रस्में

●कोहबर केवल चित्रकला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गीतों और रस्मों का भी हिस्सा है।

●गीतों का भाव: ये गीत प्रेम, स्नेह, और नवविवाहित जोड़े के मंगलकामना से जुड़े होते हैं।

●रस्में: विवाह के दौरान वर-वधू द्वारा कोहबर कक्ष में पूजन और परंपरागत अनुष्ठान।

आधुनिक युग में कोहबर का पुनरुत्थान

आज के समय में, कोहबर चित्रकला केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। यह अब दीवारों, कैनवास, कपड़ों और घरेलू सजावट में भी अपनी जगह बना चुकी है।

आधुनिक उपयोग:

◆आर्ट गैलरी और प्रदर्शनी में कोहबर चित्र।

◆फैशन इंडस्ट्री में कोहबर थीम।

◆होम डेकोर में कोहबर से प्रेरित डिज़ाइन।

संरक्षण के प्रयास: स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोहबर कला को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की जा रही हैं।

कोहबर: परंपरा से आधुनिकता तक का सफर

कोहबर भारतीय समाज की संस्कृति, परंपरा और कलात्मक अभिव्यक्ति का अद्भुत संगम है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करता है, बल्कि इसे नए युग के साथ जोड़कर हमारी पहचान को और मजबूत बनाता है।

“कोहबर केवल दीवारों पर बनी आकृतियां नहीं, यह प्रेम, प्रजनन और जीवन की सतत धारा का प्रतीक है।”

आज, जब हम कोहबर की चर्चा करते हैं, तो यह केवल एक प्राचीन परंपरा नहीं, बल्कि आधुनिकता और परंपरा के मेल का एक जीवंत उदाहरण बन चुका है।

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