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हिजड़ा और ट्रांसजेंडर शब्द से ज़्यादा ज़रूरी है इस प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति को समझना

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ये रूहों का खेल है जनाब ।

तुम जिस्म की बात करते हो ।।

हिजड़ा सिर्फ एक परंपरा है । हिजड़ा हिजर शब्द से बना है अरब देशों में जिसका मतलब बिछड़ना होता है हिजर का मतलब हिन्दी में बिछुड़ना , पलायन करना इत्यादि से है । ट्रांस जेंडर से हिजड़ा परंपरा है ना कि हिजड़ा परंपरा से ट्रांस जेंडर । जरूरी नहीं कि सभी हिजड़ा हों । बहुत से ट्रांस जेंडर अपने परिवारों में रहते हैं कई लोग शादीशुदा भी हैं । लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि जो लोग शादी शुदा हैं वह ट्रांस जेंडर नहीं होते । ट्रांस जेंडर एक सामाजिक पहचान है । जैसे मर्द, औरत और इंटर सेक्स लोग । इंटर सेक्स लोग वह होते हैं जिनका शारीरिक लिंग जन्म के समय निर्धारित करने में मुश्किल आए । उसको कई बार द्वी लिंगिय भी कहा जाता है कई बार विकृत लिंग भी कहा जाता है । यह कहना मुश्किल होगा कि पैदा होते समय शिशु के लिंग की बनावट कैसे होगी । इंटर सेक्स लोग या मर्द और औरत के शरीर में पैदा हुए शिशु जन्म के समय  ट्रांस जेंडर नहीं होते वह तो केवल एक निर्धारित शारीरिक की रचना को ले कर इस संसार में आते हैं । मर्द और औरत जन्म के समय अपने सामाजिक पहचान को नहीं जानते कि वह मर्द हैं या औरत । लेकिन समय के बदलाव के चलते जैसे किसी को अपने मर्द या औरत होने का पता लगने लगता है उसी प्रकार एक व्यक्ति को इसके शारीरिक लिंग के विपरीत अपनी अलग पहचान का अहसास होने लगता है लेकिन समाज इसकी पुष्टि नहीं करता और ना ही यह मानने को तैयार होता है कि उनका बच्चा जिसको उन्होंने एक लड़के के रूप में जन्म दिया वह यह बोले कि वह लड़का नहीं बल्कि लड़के के शरीर में पैदा हुआ एक लड़की है । जिनको हम ट्रांस महिला कहते हैं और जो महिला के शरीर में पैदा हुई हों और खुद को पुरुष मानती हों वह ट्रांस पुरुष कहलाते हैं।  यह प्रकृति की एक अलौकिक और विचित्र घटना है जो कई हजारों लोगों में एक आत ही पैदा होता है । लेकिन ईश्वर ने अपने जैसा अलौकिक और एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवर्तित होने वाला इंसान भेजा ताकि इस संसार में न्यूट्रल पावर भी समान रूप से विद्यमान रहे और धन और ऋण शक्ति को जागृत करके रखे ।

थर्ड जेंडर या तृतीय प्रकृति सिर्फ इंसानों में ही नहीं होती यह हर जीव में होती है । फ़र्क बस इतना है कि इंसान में स्वीकार नहीं किए जाने के कारण बहुत भेदभाव और शारीरिक हिंसा की जाती है लेकिन बाकी प्राणी जगत में यह सब नहीं होता । वहां सब समान रूप से रहते हैं । केवल इंसान लड़ता है । ज्यादातर ट्रांस जेंडर की उसके ना चाहते हुए भी समाज के दबाव में शादी कर दी जाती है  एक ट्रांस जेंडर का विवाह उसकी मजबूरी है और यह उसके लिए एक बहुत बड़ा टेबू या कलंक जैसा रहता है जिसको वह सारी जिंदगी झेलता है । इसी वजह से समाज में उनको बहुत बेइज्जत किया जाता है यहां तक कि ट्रांस जेंडर के खुद के खुद के समाज वाले उसको बहुत प्रताड़ित करते हैं । उसको गुमराह और ब्लैक मेल किया जाता है । जिस कारण से वह समाज में अपनी असली पहचान को जाहिर नहीं कर पाता और अंदर ही अंदर सुलगता और  चुप चुप के मरने को मजबूत होता है । ट्रांस जेंडर हो या कोई भी इंसान उसकी मर्जी के खिलाफ अगर उसकी शादी हो तो वह जीवित तो रहेगा और निभाता भी रहेगा लेकिन एक बोझ की तरफ । वह कभी खुद से और अपनी पत्नी से न्याय नहीं कर पाएगा । यही हालत ट्रांस पुरुष की भी है । बेशक वह किसी भी तरह का जुगत लगा कर या आधुनिक तकनीक की मदद से  संतान उत्पन्न कर दें फिर उसके लिए यह सब नासूर जैसा महसूस होगा ।

जबरन किया गए कार्य से कभी किसी का भला नहीं होता । खुद तो डूबेंगे दूसरों को भी डुबो देंगे । लाखों करोड़ों ट्रांस जेंडर शादी शुदा होने के बावजूद एक औरत की तरह ही महसूस करते हैं । बेशक उनकी सामाजिक स्वीकार्यता ना हो फिर भी वह छुप छुप कर साड़ी पहनना पसंद करते हैं । यह कोई बुरी आदत नहीं लेकिन समाज इसकी इजाजत नहीं देता क्यूंकि समाज मर्द प्रधान है लेकिन हमारा सनातन धर्म स्त्री प्रधान है क्यूंकि श्रीम्भगवद्गीता में भगवान उवाच । हे धनंजय । केवल अहम पुरूषम । केवल मैं ही पुरुष हूं और यह प्रकृति स्त्री है । आत्मा या जीव स्त्री है और परमात्मा पुरुष । इसी कारणवश हम सभी जीव अपनी आत्मा को स्त्री भाव में प्रकट करते हैं उदाहरण के तौर पे  मेरी आत्मा भूखी है मेरी आत्मा प्यासी है मेरी आत्मा जीवित है । क्यूंकि हमारी आत्मा औरत है और भगवान पुरुष । इसी लिए वृंदावन धाम में कोई भी पुरुष भाव में नहीं जाता सब स्त्री भाव से ही ईश्वर की आराधना करते हैं । वृंदावन धाम में कोई पुरुष नहीं । हम सब उसकी दासी ।

सूफी लोग भी अपने को औरत मानते थे और अपने मुर्शीद की इबादत करते थे । बाबा बुल्ले शाह 12 साल तक एक औरत बन कर पाऊं में घुंघरू बांध कर अपने पीर शाह इनायत को मनाने में लगे रहे । वह कहते थे नी मैं रूसिया यार मनाना चाहे मुझे घुंघरू बांधने पड़े

इस लिए यह साड़ी पहनना कोई अजीब घटना नहीं । अजीब तो भिखारी बनना है ।  

पहले साड़ी ईश्वर की भक्ति में पहनी जाती रही और ईश्वर के दरबार में भिखारी बनके जाना होता था लेकिन आज इसका उल्टा है साड़ी पहनकर दुनियां के सामने भीख मांगने वाला काम हो गया ।

यह भी सत्य है कि ट्रांस जेंडर को भीख मांगने की जरूरत भी इसी दुनियां की वजह से हुई । अगर यह दुनियां ट्रांस जेंडर को स्वीकार कर लेती और घरों से बेदखल ना किया जाए तो किसी को भी भीख मांगने की जरूरत ना पड़े । सब अपने मां बाप के साथ रहते । हिजड़ा परंपरा कोई बुरी प्रथा नहीं लेकिन इस परंपरा का ज्यादा झुकाव भक्ति की ओर होना चाहिए । पैसा बटोरने की तरफ नहीं । भिक्छु हो कर भक्ति मार्ग पर चलते हुए सिर्फ जीवित रहने के लिए मांगना कोई बुरी प्रथा नहीं । यह सनातन संस्कृति का हिस्सा भी है । यह भी जरूरी नहीं कि सभी ट्रांस जेंडर भिक्छू बन जाएं । जैसे सभी ब्राह्मण पुजारी नहीं उसी प्रकार सभी ट्रांस जेंडर बैरागी भी नहीं हो सकते जिसको जो मार्ग अपनाना वो अपना सकता है । अभी तो समाज में समानता और स्वीकार्यता ना होने के कारण भिक्छा मांगना एक मजबूरी है लेकिन मजबूरी कहीं आदत ना बन जाए इस पर भी विचार होना चाहिए । कलयुग का एक नियम है जहां धन स्वर्ण , जुआ , मदिरा और काम होगा वहां पाप की अति होगी । यह सब श्री भागवत महापुराण में हस्तिनापुर नरेश परिक्षित महाराज और कलयुग की वार्ता रूप में वर्णित है।  

किन्नर देवाधिदेव महादेव के पार्षद हैं उनकी इज्जत करना हर प्राणी का धर्म है और किन्नर का धर्म प्राणिमात्र के लिए दुआ करना और धर्म के मार्ग पर चल कर मोक्ष को प्राप्त करना है । किन्नर या ट्रांस जेंडर कोई असली नकली नहीं होता । मानव मात्र के लिए अहित और हानि का सोचना ही पाप है । नकली किन्नर भी उस असली किन्नर से लाख गुण बेहतर होता है जो कोई इंसान अपनी असली किन्नर पहचान के धौंस में देश और दुनिया का विनाश का सोच रहा हो ।

रावण चतुर्वेदी ब्राह्मण होते हुए भी पाप के सागर में बैठा था । क्यूंकि वह मानव कल्याण का नहीं सोचता था और स्वर्ण नगरी का अधिपति असुर था । जहां स्वर्ण होगा वहां पाप होना निश्चित है ।

हमें किन्नर परंपरा को सही दिशा में लेकर जाना चाहिए  जहां ज्ञान हो दर्शन हो धर्म हो और धर्म स्थान में बैठने योग्य शिव पार्षद हो ।

इति श्री

जय श्री महाकाल

लेखक धनंजय चौहान 

ट्रांस जेंडर मानव अधिकार कार्यकर्ता और शोधार्थी

चण्डीगढ़

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